दीपों की कतारों से
मंगल गायन गुंजित हों
बेला-रजनीगंधा सुवास से
पुलकित मन उपवन हों
देवों की अनुकम्पा हो
मनुजों का अनुराग रहे
दीपपर्वों की शुभ बेलायें ये
चिरस्थायी-सुखकारी हों
दीपशिखा लहराए जब
मन-मयूर आमोदित हो
परिजन प्रियजन नृत्यवान हों
प्रभु लीलाओं को उद्धत हों
राम तात हों सीता माता
हनुमान सहचारी हों
'रामराज्य' ना स्वप्न रहे बस
ज्यों इस प्रकार दीवाली हो
मन-मंदिर के प्राकारों में
शुभविचार संचारी हों
निज क्लेश की पीड़ा छूटे
पर-पीड़ा दुःखकारी हो
दुःख के सब स्फोटक फूटें
सुख की छुर्री चट पट हो
काम-क्रोध-मद प्रक्षेपित हों
शुभचिंतन अनारी हों
निज, पर की सीमायें बिखरें
प्राणिमात्र से नाता हो
दीवाली हो या हो होली
गुरुपरब-ओ-रमजान रहे
क्रिसमस हैलोवीन भी जो हो
सब के मन में उत्सव हों
तो शुभकामन का ये प्रेषण भी
अनावश्यक सी लाचारी हो
Tuesday, November 02, 2010
Saturday, September 25, 2010
Wednesday, September 01, 2010
Sunday, January 03, 2010
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Wednesday, November 18, 2009
Saturday, September 12, 2009
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